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Home News

आज कहां खड़े हैं बंजारे

न्यूज डेस्क by न्यूज डेस्क
December 18, 2020
in News
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भारत में सदियों से बंजारे खानाबदोश जिंदगी जी रहे हैं. लेकिन आज भी वे समाज के हाशिए पड़ा ऐसा समुदाय है जो आधुनिकता की दौड़ में बहुत पीछे है. एक झलक इन लोगों की जिंदगी में.

पीठ पर परंपरा

पारंपरिक रूप से बंजारे काम धंधे और कारोबार की तलाश में एक जगह से दूसरी जगहों पर जाने वाले लोग हैं. अब वे पूरे देश में फैले हैं लेकिन उनकी जड़ें राजस्थान से बताई जाती हैं. अलग अलग जगहों पर उनके नाम भी अलग हैं. जैसे आंध्र प्रदेश में उन्हें लंबाडा या लंबाडी कहते हैं जबकि कर्नाटक में लंबनी और राजस्थान में गवार या गवारिया.

पुराने मुसाफिर और कारोबारी

अतीत में बंजारा लोगों के जरिए बहुत से इलाकों में नमक और दूसरी जरूरी चीजें पहुंचा करती थीं. उन्हें बढ़िया कारोबारी माना जाता था. बंजारा शब्द “वनज” यानी व्यापार और “जारा” यानी यात्रा से बना है. उनकी भाषा गारबोली है, जो बहुत सारी भारतीय बोलियों के शब्दों से बनी है. अलग अलग इलाकों में गारबोली भी अलग अलग होती है.

अलग पहनावा और गहने

बंजारा समुदाय की महिलाएं अपने पहनावे और गहनों के कारण दूर से ही पहचान में आती हैं. वे सिक्कों या फिर स्टील और अन्य धातुओं से बने गहने पहनती हैं. उनके पास सोने का सिर्फ एक गहना दिखता है, वो है नाक की लौंग. उनके कपड़े भी बहुत रंग बिरंगे होते हैं. आम तौर पर बंजारा महिलाएं अपने कपड़े और गहने खुद ही बनाती हैं.

भेदभाव के शिकार

भारत में बंजारों को अलग अलग जगहों पर अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा या फिर गैर पत्रित जनजाति जैसी श्रेणियों में रखा गया है. बंजारा समुदाय आज भी समाज में हाशिए पर जिंदगी गुजारने को मजबूर है. कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यूरोप के खानाबदोश रोमा लोग भी भारतीय बंजारों के वंशज हैं.

बदलाव की लहर

राजस्थान के बिंसूर गांव में रह रहे बंजारा समुदाय के लोगों के बीच बदलाव का अहसास भी होता है. अब समुदाय के कुछ पुरुष एक जगह रहकर काम करने लगे हैं और अपने बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं, ताकि उनका भविष्य बेहतर हो सकें. हालांकि बहुत से बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं और आखिरकार पशुओं को चराने के काम में लग जाते हैं.

डिजिटल लहर

कुछ साल पहले बंजारा समुदाय में महिलाओं की माहवारी और साफ सफाई से जुड़े विषयों पर कोई बात नहीं होती थी. लेकिन अब बंजारा समुदाय की महिलाओं के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. कुछ एनजीओ तो उन्हें कंप्यूटर भी सिखा रहे हैं, ताकि वे भी इस जमाने से खुद को जोड़ पाएं.

Tags: hamirpur newshindinewsupnews
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